शारदीय नवरात्र - प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है जवारे बोना

श्रीमती उषा भरत चतुर्वेदी


हमारी भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में जो भी त्यौहार एवं उत्सव मनाई जाते हैं कहीं ना कहीं हमारी प्रकृति विज्ञान मानव स्वभाव से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहते हैं। कोई कोई त्यौहार तो हमारा ऋतु परिवर्तन का सूचक होता है । दीपावली का त्यौहार वर्षा ऋतु के उपरांत आता है वर्षा ऋतु में वर्षा के कारण वातावरण सीलन भरा हो जाता है मकानों. एवं  बिल्डिंग की हालत बारिश के कारण खराब हो जाती है और यह बात हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि दीपावली के पहले ज्यादातर घरों में पुताई कराई जाती है घर की सारी सामग्री की साफ सफाई करके लक्ष्मी आगमन की प्रतीक्षा की जाती है वर्षा ऋतु में जो भी कीड़े मकोड़े जो भी गंदगी होती है पुताई के कारण वह सारी साफ हो जाती और हमारे मानव के स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छता परम आवश्यक है। होली का त्यौहार उत्साह और उमंग का त्यौहार होता है मनुष्य के जीवन में उत्साह और खुशी का संचार निरंतर चलता रहे।
बसंत ऋतु के उपरांत शारदीय नवरात्र का प्रारंभ होता है परेवा से नौमी तक नवरात्र का धार्मिक उत्सव मनाया जाता है इन 9 दिनों जगत जननी दुर्गा मां के नौ रूपों की आराधना एवं पूजा की जाती है। भक्तगण नवरात्र में दुर्गा मां के श्रद्धा के कारण व्रत रख ते हैं मां की आराधना किसी तपस्या से कम नहीं भक्तगण विभिन्न प्रकार से व्रत रखकर अपनी श्रद्धा और भक्ति को मां के चरणों में अर्पण करते हैं
हमारी पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि सर्वप्रथम भगवान रामचंद्र जी ने समुद्र के किनारे शारदीय नवरात्र में मां की आराधना की थी उसके उपरांत ही सेतु का निर्माण प्रारंभ हुआ था
चैत्र मास की नवरात्रि हो अथवा शार दीय नवरात्रि दोनों नवरात्रि में जवारे बोए जाते हैं जवारे बोने की परंपरा अनादि काल से चली आ रही और भक्ति गण दोनों नवरात्रों में जवारे बोते हैं। जवारे को कहीं-कहीं खेत्री बिजीत भी कहा जाता है।
क्यों बोये  जाते है ज्वारे 
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संपूर्ण हिंदू समाज में नवरात्र के प्रारंभ में जब घट की स्थापना की जाती है उसी समय जो बोने की प्रथा है उसे जवारे बोना कहते हैं या खेत्री बिजीत कहते हैं। जो. जौबोये   जाते हैं उनके उत्पन्न होने पर या बड़े होने पर जवारे बोला जाता है
कथा ----- मां दुर्गा का जो हम पाठ करते हैं उसके ग्यारहवें अध्याय में इस बात का उल्लेख है मां शाकंभरी देवी के सम्मान में जवारे बोए जाते हैं मां शाकंभरी दुर्गा माता का रूप है और मां पोषण की माता है अतः हमारा घर परिवार सुख समृद्धि और धन्य धन्य से भरपूर रहे इसलिए जवारे बोए जाते हैं
   जौ बसंत ऋतु की पहली फसल है उसको मां के चरणों में अर्पण करना मानव अपना पहला कर्तव्य समझता है
मान्यताये -----
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, एक मान्यता यह भी है जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ था तो पहली फसल जौ की हुई थी इसलिए इसे देवी माता पर चढ़ाया जाता है
धरती पर जितने भी अनाज हैं उसमें जौ  को पूर्ण अन्न माना जाता है अन्य किसी अनाज को नहीं यही कारण है हवन आदि में जौ को ही देवी देवताओं को अर्पित किया जाता है
तीसरी मान्यता वैज्ञानिक जौ  सबसे सरलता से पचता है तथा स्वास्थ्यवर्धक है बहुत सी बीमारियों में इसका उपयोग किया जाता है उपरोक्त भिन्न-भिन्न कारण है इन्हीं कारणों से जवारे बोई जाते हैं
जवारे कैसे बोये ----/
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जवारे बोने के लिए जहां पर हम दुर्गा मां की मूर्ति की स्थापना करें उनके आगे जवारे बोए जाते हैं जवारे बोने के लिए एक बांस की डलिया ले यदि बांस की डलिया उपलब्ध ना हो तो आप कच्ची जमीन अथवा पक्की जमीन पर चौकोर रूप में मिट्टी की परत जमा कर वहां पर जवारे बोए
पहले जितने जौ  बोने हो उन्हें अच्छी तरह से साफ कर ले फिर जौ को साफ पानी में रात भर भिगो दे आप देखेंगे जो खराब होंगे वह ऊपर आ जाएंगे उन्हें आप निकाल दें तथा जो पानी में नीचे बैठे हैं सिर्फ उन्हीं को मां दुर्गा का नाम लेकर उस मिट्टी में मिला दे मिट्टी जो के ऊपर थोड़ी सी ही डालें साथ में मां लक्ष्मी जी का भी आवाहन करने के लिए थोड़े से साफ गेहूं के दाने भी डाल दें जब हम जौ बोये उस समय नौ माताओ तथा नवग्रह का नाम भी लें 
जो बोने के बाद बीचो बीच में मिट्टी का कलश स्थापित करें उस कलश में जल भर दे तथा ऊपर आम के पत्ते लगाकर श्रीफल लाल कपड़े में लपेटकर रख दें एक बार घटित स्थापित करने के बाद उसे हिलाते नहीं हैं अब पानी का छिड़काव करें मिट्टी का कलश रखने का यह लाभ होता है उसमें नमी बनी रहती है तथा 9 दिन तक जल भरा रहता है 9 दिन तक जो के ऊपर जो हम जल डालते हैं उस कारण घट भी नमी से भरा रहता है आप देखेंगे 3 दिन बाद जो मैं अंकुर फूटने लगेंगे और बाकी 6 दिन बहुत तेजी से बढ़ेंगे
कलर्स के पास दीपक नहीं जलाते
 हैं दीपक मां दुर्गा के सामने जलाना चाहिए
भविष्य काज्ञान ----//
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जवारे की वृद्धि हमें हमारे भविष्य का भी संकेत देती है ऐसी लोगों की मान्यता है यदि जवारे हरे हरे रंग के और काफी लंबे हो तो घर में सुख समृद्धि आएगी यदि जवारे मुरझाए हुए हो तो यह संकेत है कि घर में कोई कष्ट आने वाला है


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        समाज का हर वर्ग के लिए अलग-अलग अर्थ होता है जो आर्य तेजी से बढ़ते हैं तो किसान प्रसन्न होता है उसकी फसल तेजी से बढ़ेगी अर्थात अच्छी होगी वैश्य के लिए अच्छे तथा बुरे व्यापार का संकेत होता है क्षत्रियों के लिए युद्ध में जय तथा पराजय का संकेत है ब्राह्मण इसे अपने अध्ययन से जोड़कर देखता है उसकी शिक्षा पूरी होगी अथवा अधूरी
दशहरे वाले दिन ज्वारे की पत्तियां तोड़ कर बहन अपने मां भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके कान जवारे २रवती है तथा सगे संबंधियों के यहां जाकर जवारे कान पर रखकर उनसे आशीष लिया जाता है तथा कलश का जल पूरे घर में छिड़क दिया जाता है यदि जवारे बचते हैं तो उन्हें ठंडा कर देते हैं